Monday, September 20, 2010

मिर्जा ग़ालिब की बहुचर्चित गजल - 'हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि, हर ख़्वाहिश पे दम निकले'

पेश है मिर्जा ग़ालिब की बहुचर्चित गजल -  हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि, हर ख़्वाहिश पे दम निकले....

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि, हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले

निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आये थे लेकिन
बहुत बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले

अगर लिखवाए कोई उसको ख़त, तो हमसे लिखवाए
हुई सुबह और घर से कान पर रख कर क़लम निकले
मुहब्बत में नही है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस क़ाफ़िर पे दम निकले

ख़ुदा के वास्ते पर्दा न काबे का उठा ज़ालिम
कहीं ऐसा न हो यां भी वही क़ाफ़िर सनम निकले

कहाँ मैख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था कि हम निकले


3 comments:

  1. Is khubsurat ghazal se rubaru karane ka shukriya...

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  2. बहुत बढ़िया अपना प्रयास जारी रखें ...शुभकामनायें
    चलते -चलते पर आपका स्वागत है

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  3. काफी अच्छा किया

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