पेश है साहिर लुधियानवी की प्रसिद्ध ग़ज़ल 'कभी ख़ुद पे, कभी हालात पे रोना आया'
कभी ख़ुद पे, कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर एक बात पे रोना आया !
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को
क्या हुआ आज, यह किस बात पे रोना आया !
किस लिए जीते हैं हम, किसके लिए जीते हैं ?
बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया !
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर, ऐ दोस्त !
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया !
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया ! बहुत सुन्दर...
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