Wednesday, September 15, 2010

मिर्जा ग़ालिब की मशहूर गजल 'आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक'

पेश  है मिर्जा ग़ालिब की मशहूर गजल ' आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक'



आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तॆरी ज़ुल्फ कॆ सर होने तक!

आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब‌
दिल का क्या रंग करूं खून‍-ए-जिगर होने तक!

हमने माना कि तगाफुल ना करोगे लेकिन‌
ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको खबर होने तक!

गम-ए-हस्ती का "असद" किससे हो जुज-मर्ग-इलाज
शमा हर हाल में जलती है सहर होने तक!

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