Sunday, September 19, 2010

' माँ ' - निदा फाज़ली की बहुचर्चित रचना

पेश  है  निदा फाज़ली साहब की बहुचर्चित रचना ' माँ '  :

बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ ,
याद आता है चौका-बासन, चिमटा फुँकनी जैसी माँ

बाँस की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे ,
आधी सोई आधी जागी थकी दुपहरी जैसी माँ

चिड़ियों के चहकार में गूँजे राधा-मोहन अली-अली ,
मुर्गे की आवाज़ से खुलती, घर की कुंड़ी जैसी माँ 

बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में ,
दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी माँ 

बाँट के अपना चेहरा, माथा, आँखें जाने कहाँ गई ,
फटे पुराने इक अलबम में चंचल लड़की जैसी माँ

10 comments:

  1. बेहतरीन ग़ज़ल| मकता कमाल का है .......दिल से मुबारकबाद|

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  2. चिड़ियों के चहकार में गूँजे राधा-मोहन अली-अली ,
    मुर्गे की आवाज़ से खुलती, घर की कुंड़ी जैसी माँ

    अच्छी पंक्तिया ........

    इसे भी पढ़कर कुछ कहे :-
    आपने भी कभी तो जीवन में बनाये होंगे नियम ??

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  3. वाकई फाज़ली जी की बहुचर्चित रचना है। अच्छा लगा पढ़कर...धन्यवाद

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  4. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 22 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

    http://charchamanch.blogspot.com/
    कृपया कमेंट्स की सेटिंग से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ..

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  5. क्या कहूँ ……………निशब्द कर दिया।

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  6. बहुत ही भावमय प्रस्‍तुति ।

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  7. कल गल्ती से तारीख गलत दे दी गयी ..कृपया क्षमा करें ...साप्ताहिक काव्य मंच पर आज आपकी रचना है


    http://charchamanch.blogspot.com/2010/09/17-284.html

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  8. माँ शब्द का इससे अच्छा वर्णन हो ही नहीं सकता .. बहुत सुन्दर

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  9. KIYA COMMENTS DUN 'JUGNOO SOORAJ KO RAH NAHI BATA SAKTA.'

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  10. बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में ,
    दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी माँ

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