पेश है निदा फाजली की प्रसिद्ध ग़ज़ल ' आदमी'
हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी,
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी,
सुबह से शाम तक बोझ ढ़ोता हुआ,
अपनी लाश का खुद मज़ार आदमी,
हर तरफ भागते दौड़ते रास्ते,
हर तरफ आदमी का शिकार आदमी,
रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ,
हर नए दिन नया इंतज़ार आदमी,
जिन्दगी का मुक्कदर सफ़र दर सफ़र,
आखिरी साँस तक बेकरार आदमी
हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी,
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी,
सुबह से शाम तक बोझ ढ़ोता हुआ,
अपनी लाश का खुद मज़ार आदमी,
हर तरफ भागते दौड़ते रास्ते,
हर तरफ आदमी का शिकार आदमी,
रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ,
हर नए दिन नया इंतज़ार आदमी,
जिन्दगी का मुक्कदर सफ़र दर सफ़र,
आखिरी साँस तक बेकरार आदमी
हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी,
ReplyDeleteफिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी,
Bahut Khoob
बहुत बढ़िया प्रस्तुति|
ReplyDeleteरोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ,
ReplyDeleteहर नए दिन नया इंतज़ार आदमी,
निदा फाजली साहब की मशहूर गजलों में से एक...बहुत खूब
http://veenakesur.blogspot.com/
धन्यवाद्
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeletebahut badhiya...
ReplyDeletebehtareen....
नमस्कार ! आपकी यह पोस्ट जनोक्ति.कॉम के स्तम्भ "ब्लॉग हलचल " में शामिल की गयी है | अपनी पोस्ट इस लिंक पर देखें http://www.janokti.com/category/ब्लॉग-हलचल/
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
MASZID KI BARADARI KE WASTE BE-DAR-O-DEEVAR GHAR N KEEGIYE.
ReplyDeleteBANDGI KA HAI YAHI PAHLA SABAK; Aadmi se piyar darna seekhiye.